क्या जेल में जन्म लेने का मतलब शिक्षा से बहिष्कार है?” लॉ एंड जस्टिस सोसाइटी के सदस्य कृष्णकांत की पहल से भारत सरकार की टूटी नींद
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने औपचारिक पत्र किया जारी

क्लिक उत्तराखंड:-(ब्यूरो) देशभर की जेलों में बंद महिला बंदियों के बच्चों के शिक्षा अधिकार को लेकर उठी एक संवेदनशील और ऐतिहासिक आवाज़ अब देश के सबसे बड़े मंच तक पहुँच चुकी है। लॉ एंड जस्टिस सोसाइटी के सदस्य और सामाजिक विचारक कृष्णकांत के अनुरोध पर भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने औपचारिक पत्र जारी किया है, जो यह दर्शाता है कि यह मुद्दा अब केवल संवेदना नहीं, बल्कि नीति-निर्माण का विषय बन चुका है।

इस पत्र में शिक्षा मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि ‘शिक्षा’ एक समवर्ती विषय है और RTE Act, 2009 के अंतर्गत राज्यों की जिम्मेदारी बनती है कि वे वंचित वर्ग के बच्चों—जिनमें जेलों में रहने वाले बच्चे भी शामिल हैं उसके लिए जरूरी नियम बनाएं और उन्हें निशुल्क शिक्षा दिलाएं। यह उत्तर न केवल एक कानूनी स्थिति को स्पष्ट करता है, बल्कि कृष्णकांत की इस मांग को नैतिक समर्थन भी देता है कि महिला कारागारों में पल रहे बच्चों के लिए शिक्षा का विशेष बंदोबस्त किया जाए।
कृष्णकांत ने अपने अनुरोध में इस वर्ग के बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष नीति बनाने की माँग करते हुए तर्क दिया कि ये मासूम बच्चे ऐसी परिस्थितियों में जन्म लेते हैं, जहाँ शिक्षा और सामाजिक विकास के सभी द्वार पहले ही बंद हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि यदि देश का संविधान सभी बच्चों को समान शिक्षा का अधिकार देता है, तो फिर ये बच्चे क्यों वंचित रहें?
इस पूरे घटनाक्रम ने एक ऐसी बहस को जन्म दिया है जो आने वाले समय में न सिर्फ शिक्षा प्रणाली में सुधार की दिशा तय करेगी, बल्कि जेल सुधार और पुनर्वास की संकल्पना को भी नया आधार देगी। सामाजिक न्याय, मानवाधिकार और संवैधानिक उत्तरदायित्व का यह संगम, भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे में एक प्रेरणादायक उदाहरण बनकर उभरा है। कृष्णकांत की यह पहल न केवल एक व्यक्तिगत चिंता का परिणाम है, बल्कि यह उस संवेदनशील भारत की आवाज़ है जो चाहता है कि संविधान में निहित हर अधिकार वास्तव में ज़मीन पर उतर सके। इससे स्पष्ट हो चुका हैं कि चाहे वह बच्चा जेल की दीवारों के भीतर पैदा हुआ हो या बाहर