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दरगाह साबिर पाक के 756वें सालाना उर्स में आज हुई गुसल शरीफ की अहम रस्म

रूहानियत का फैज हासिल कर नम आंखों के साथ लौटने लगे अकीदतमंद जायरीन, सूफियों ने लंगरखाने से तबर्रुक(प्रसाद) लेने पर जताया विरोध...(देखिए वीडियो)

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क्लिक उत्तराखंड:-(बुरहान राजपुत)

दरगाह साबिर पाक के 756 वें सालाना उर्स का समापन गुसल शरीफ की रस्म के साथ हो गया हैं। उर्स में शामिल होने के लिए कलियर पहुंचे अकीदतमंद जायरीनों ने गुसल शरीफ की अहम रस्म के दौरान साबिर पाक की दरगाह को गुलाब जल, केवड़ा और इत्र से नहलाया।

इस दौरान गुसल का पानी लेने के लिए अकीदतमंद जायरीन बोतल, गिलास और कोटरे लिए साबिर पाक के दरबार में खड़े रहे। वही गुलाब जल की खुशबू से दरगाह परिसर महक उठा।

दरगाह साबिर पाक रह० अलैहि०

दरगाह साबिर पाक के 756वें सालाना उर्स की सभी मुख्य रस्में सकुशल संपन्न हो गई हैं। बुधवार को उर्स की अहम रस्म गूसल शरीफ दरगाह परिसर में मनाई गई।

गुसल शरीफ की रस्म अदायगी के दौरान सज्जादानशीन शाह अली एजाज कुद्दूसी साबरी

इस दौरान सज्जादानशीन शाह अली एजाज कुद्दुशी साबरी ने गुस्ल शरीफ की रस्म अदा कराई। उर्स में देश विदेश से आए जायरीनों ने यह रस्म अदा की। रस्म अदायगी के दौरान सबसे पहले मजार शरीफ में संदल पेश किया गया।

दरगाह साबिर पाक परिसर में गुसल शरीफ की रस्म के दौरान उमड़ी अकीदतमंदों की भारी भीड़

इसके बाद बाहर से आए जायरीनों ने दरगाह परिसर को इत्र, गुलाब जल, केवड़ा से नहलाया, जिसकी खुश्बू से दरगाह परिसर महक उठा।वही उर्स में शामिल होने आए अकीदतमंद जायरीनों के कपड़े भी गीले हो गए। गुसल शरीफ का पानी पाने के लिए अकीदतमंद जायरीनों उसको बोतल, शीशी,गिलास,कोटरो में भरा। वही जायरिनों ने साबिर पाक में हाजिरी लगाकर दोबारा जल्द आने की दुआएं मांगी। रूहानियत का फैज हासिल कर नम आंखों के साथ अकीदतमंद जायरीन वापस अपने अपने गंतव्य को लौट गए।


सूफियों ने तबर्रुक(प्रसाद) लंगरखाने से लेने पर जताया विरोध

लंगरखाने से तबर्रुक(प्रसाद) का विरोध जताते हुए सूफी-संत

दरगाह साबिर पाक का 756 वें उर्स संपन्न हो गया है। समापन के दौरान दूर दराज से आए सूफियों को दरगाह परिसर से तबर्रुक(प्रसाद) वितरण किया जाता हैं, लेकिन इस बार तबर्रुक(प्रसाद) की व्यवस्था दरगाह प्रबंधन ने लंगरखाने में की हैं। जिस पर सूफियो ने कड़ा विरोध करते हुए तबर्रुक(प्रसाद) लेने से मना कर दिया, और सूफियों ने कहा कि जहां से पूर्व की भांति तबर्रुक(प्रसाद) बंटता आ रहा था, वो वही से ही तबर्रुक(प्रसाद) लेंगे.अन्यथा नहीं लेंगे

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