हरिद्वार का बाजीगर कौन?…किसके सर सजेगा जीत का सेहरा,
हरिद्वार लोकसभा सीट पर जीत के फैक्टर......क्या कहते हैं समीकरण...और क्या हैं हरिद्वार लोकसभा सीट का इतिहास
क्लिक उत्तराखंड:-(बुरहान राजपुत) लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर चुनावी बगुल बज चुका है। करीब सभी पार्टियों ने अपने अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतार दिया हैं।
वही इस बार उत्तराखंड की हरिद्वार लोकसभा सीट प्रदेश की सबसे हॉट सीट बनने जा रही है। हरिद्वार की लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होगा।
जिसमे निर्दलीय विधायक उमेश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हैं। क्यूंकि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने दिल्ली में डेरा डालकर लंबी तपस्या के बाद अपने बेटे वीरेंद्र सिंह रावत के हक में टिकट कराकर ही दम लिया। लेकिन हरिद्वार की लोकसभा सीट पर राजनीति के इतिहास में कई उतार चढाव दिखाई दिए हैं।
जिसमे 1977 में अस्तिव में आई हरिद्वार लोकसभा सीट पर 6 बार भाजपा तो 4 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। लेकिन हरिद्वार लोकसभा सीट का 2014 में परिसीमन होने के बाद बड़ा उलटफेर देखने को मिला।
हरिद्वार लोकसभा सीट में 14 विधानसभाएं आती हैं। इनमे 11 विधानसभाएं हरिद्वार की और शेष 3 देहरादून जिले की सीटें हैं। परिसीमन के दौरान देहरादून जिले के विधानसभा क्षेत्र डोईवाला, धर्मपुर, ऋषिकेश को शामिल किया गया। ऐसे में हरिद्वार की लोकसभा सीट पर चुनावी समीकरण ही नहीं बदले, अपितु कई दिगाजों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी रही हैं।
हरिद्वार लोकसभा सीट पर जीत के फैक्टर, क्या कहते हैं समीकरण?
हरिद्वार लोकसभा सीट पर 60 फीसदी आबादी गांव में रहती है। जबकि 40 शहरी क्षेत्र में। शहरों में अनुसूचित जनजाति का आंकड़ा मात्र 0.44 अनुसूचित जाति 19.23 प्रतिशत है। सबसे अहम बात इस सीट पर सबसे ज्यादा ओबीसी वर्ग का वोटर है। जोकि करीब 40 फीसदी हैं। इसके साथ ही हरिद्वार लोकसभा सीट में मुस्लिम वोटर की भी अच्छी खासी तादाद हैं। जो कि करीब 25 फीसदी है। पिरान कलियर, भगवानपुर, मंगलौर, ज्वालापुर विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं।
(फाइल फोटो)
वही हरिद्वार की लोकसभा सीट पर दल बदलने की राजनीति से बड़ा उलट फेर देखने को मिल सकता हैं। क्योंकि बड़ी संख्या में हरिद्वार के वरिष्ठ नेता अपने समर्थकों के साथ दूसरी पार्टियों की शरण ले रहे हैं। वही पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में विपक्षियों को शामिल कराने को लेकर पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकताओं अंदरूनी तौर पर विरोध जता रहे हैं। जिससे सीधा लाभ निर्दलीय प्रत्याशी को मिलेगा। वही निर्दलीय मजबूत प्रत्याशी के रूप में खानपुर से विधायक उमेश कुमार मैदान में हैं।
वही कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने परिवारवाद को बढ़ावा देकर अपनी मुश्किलें बढ़ा ली है। क्योंकि हरदा ने इस लोकसभा चुनाव में अपने पुत्र वीरेंद्र सिंह रावत को लॉन्च किया है। जिसके कारण कांग्रेसी कार्यकर्ता बेहद नाराज हैं। और पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल हो रहे है। वही कुछ कांग्रेसी नेताओ ने उनसे दूरी बना ली है। ओबीसी समाज के वरिष्ठ नेता को टिकट ना होने के कारण ओबीसी समाज भी उनसे खफा चल रहा है। और साथ ही बसपा में भावना पांडेय को टिकट मिलने के बाद से ही बसपा खेमे में हलचल तेज हैं। और वरिष्ठ बसपा नेता पार्टी छोड़कर अन्य पार्टीयो और निर्दलीय को समर्थन कर रहे हैं। आखिरकार ये तो आने वाला समय ही बताएगा कि हरिद्वार का बाजीगर कौन होगा। और सेहरा किस ओर सजेगा। क्योंकि उलट फेर की राजनीति से अभी तक हरिद्वार में त्रिकोणीय मुकाबला बना हुआ हैं। लेकिन कुछ दिनों बाद जल्द ही हरिद्वार की राजनीति की स्थिति साफ नजर हो जायेगी।