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नन्हीं परी’ गैंगरेप मर्डर मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल: जाने किसको सौंपी गई जिम्मेदारी

सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य आरोपी को सबूतों के अभाव में कर दिया था बरी.

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क्लिक उत्तराखंड:-(ब्यूरो) नन्हीं परी’ गैंगरेप मर्डर मामले में उत्तराखंड सरकार ने त्वरित संज्ञान लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में 27 सितंबर को पुनर्विचार याचिका दाखिल की है. इस याचिका का प्रारूपण एसपी सिटी हल्द्वानी प्रकाश चंद्र आर्या द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया गया है। इस मामले की पैरवी के लिए उत्तराखंड सरकार ने भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को जिम्मेदारी सौंपी है, ताकि सर्वोच्च स्तर पर ‘नन्हीं परी’ को न्याय मिल सके. परिजनों ने भी सॉलिसिटर जनरल से भेंटकर उत्तराखंड सरकार के इस कदम पर संतोष व्यक्त किया है और उन्हें विश्वास है कि ‘नन्हीं परी’ को न्याय मिलेगा. उन्होंने सरकार द्वारा उठाए गए इस त्वरित और ठोस कदम के लिए आभार व्यक्त किया है। जिला प्रशासन की ओर से जिलाधिकारी विनोद गोस्वामी ने परिजनों को सरकार की गंभीरता और अब तक किए गए प्रयासों की जानकारी दी. साथ ही उपजिलाधिकारी सदर मंजीत सिंह और पुलिस उपाधीक्षक गोविंद बल्लभ जोशी ने ‘नन्हीं परी’ के घर जाकर माता-पिता से भेंट की और उन्हें शासन-प्रशासन की ओर से हर संभव सहयोग और समर्थन का भरोसा दिलाया। उत्तराखंड सरकार का स्पष्ट मत है कि ‘नन्हीं परी’ को न्याय दिलाने में किसी भी स्तर पर कोताही नहीं बरती जाएगी. इस मामले को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखते हुए सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है. सरकार का उद्देश्य है कि दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिले और भविष्य में ऐसे अपराधों के खिलाफ एक सशक्त संदेश जाए। पुनर्विचार याचिका की सुनवाई भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता खुद इस मामले की पैरवी करेंगे, ताकि उच्चतम स्तर पर ‘नन्हीं परी’ को न्याय मिल सके. उत्तराखंड सरकार का मानना है कि यह केवल एक बच्ची के न्याय का प्रश्न नहीं है, बल्कि पूरे उत्तराखंड की अस्मिता और सुरक्षा का विषय है। राज्य सरकार ने परिजनों को आश्वस्त किया है कि न्याय की इस लड़ाई में वे अकेले नहीं हैं, बल्कि पूरा उत्तराखंड और देश उनके साथ खड़ा है. प्रशासनिक और कानूनी स्तर पर हर संभव कदम उठाए जाएंगे, ताकि अपराधियों को कठोर दंड मिल सके.

ये था घटनाक्रम…..

पिथौरागढ़ की 7 वर्षीय मासूम ‘नन्हीं परी’ नवंबर 2014 में अपने परिवार के साथ काठगोदाम एक रिश्तेदार के यहां शादी में आई थी. एक दिन ‘नन्हीं परी’ अचानक लापता हो गई. लापता होने के बाद पांच दिन बाद बच्ची का शव गौला नदी के किनारे लगभग 500 मीटर दूर जंगलों में मिला था. जांच में बच्ची के साथ दुष्कर्म और निर्मम हत्या की बात सामने आई थी. इस जघन्य घटना के बाद पूरे क्षेत्र में भारी आक्रोश पैदा कर दिया था. जगह-जगह धरना प्रदर्शन भी हुए थे। पुलिस ने मामले में तीन आरोपियों को नामजद किया था. बाद में एक आरोपी मसीह को दोषमुक्त कर दिया गया था. जबकि मुख्य आरोपी अख्तर अली को पॉक्सो अधिनियम और आईपीसी की धारा 376 के तहत दोषी करार देते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी. जबकि दूसरे आरोपी प्रेमपाल को पांच साल की कैद और जुर्माना लगाया गया था. आरोपी पक्ष ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. जहां सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी अख्तर अली को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है.

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