देश भर में आज धुमधाम से मनाया जा रहा है बकरीद का त्यौहार
मुस्लिम समुदाय के लोगो ने अदा की ईद उल अजहा की नमाज,देश की तरक्की और खुशहाली की मांगी दुआएं,
क्लिक उत्तराखंड:-(ब्यूरो) देशभर में आज यानी सोमवार, 17 जून को ईद-उल-अजहा का त्योहार धूमधाम से मनाया जा रहा है. इसे ईद उल-अजहा या बकरीद भी कहते हैं।
ईद की नमाज होने के बाद बकरे या किसी अन्य जानवर की कुर्बानी का सिलसिला शुरू हो जाएगा। बकरीद पर कुर्बानी का काफी खास महत्व है. कुर्बानी के बाद उसके हिस्से को गरीबों में तकसीम किया जाता है।
कैसे शुरू हुई कुर्बानी की परंपरा?
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, इस्लाम के पैगंबर हजरत इब्राहिम 80 साल की उम्र में पिता बने थे. उनके बेटे का नाम इस्माइल था. इस्माइल से पिता हजरत इब्राहिम को बहुत ज्यादा प्यार था।
(फाइल फोटो)
इसी दौरान हजरत इब्राहिम को एक रात ख्वाब आया कि उन्हें अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करना होगा. इस्लामिक जानकार बताते हैं कि हजरत इब्राहिम के लिए ये अल्लाह का हुक्म था, जिसके बाद हजरत इब्राहिम ने बेटे को कुर्बान करने का फैसला कर लिया।
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, अल्लाह के हुक्म पर बेटे इस्लाइम की कुर्बानी देने से पहले हजरत इब्राहिम ने कड़ा दिल करते हुए आंखों पर पट्टी बांध ली और उसकी गर्दन पर छुरी रख दी। हालांकि, उन्होंने जैसे ही छुरी चलाई तो वहां अचानक उनके बेटे इस्माइल की जगह एक दुंबा (बकरा) आ गया. हजरत इब्राहिम ने आंखों से पट्टी हटाई तो उनके बेटे इस्माइल सही-सलामत थे।
इस्लामिक मान्यता है कि ये सिर्फ अल्लाह का एक इम्तिहान था. अल्लाह के हुकुम पर हजरत इब्राहिम बेटे को भी कुर्बान करने के लिए तैयार हो गए. इस तरह जानवरों की कुर्बानी की यह परंपरा शुरू हुई।
बता दें कि हर साल बकरीद की तारीख इस्लामिक महीने के जिलहिज्जा का चांद के दिखने पर ही निर्भर करती है. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, जिलहिज्जा महीना यानी बकरीद इस्लाम का 12वां महीना होता है। आज ईद उल अजहा यानी बकरीद के मौके पर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने ईदगाह में रब के सामने सजदा ए शुक्र अदा किया। इसके बाद देश की तरक्की और खुशहाली की दुआएं मांगी गई।