
क्लिक उत्तराखंड:-(बुरहान राजपूत) नैनीताल हाइकोर्ट ने कलियर में हुए मां-बेटे के दोहरे हत्याकांड मामले में निचली अदालत का फैसला पलटते हुए दोबारा नए सिरे से सुनवाई के आदेश दिए हैं।
कोर्ट ने माना है कि निचली अदालत ने कानून की मूल प्रक्रिया का पालन नहीं किया, जिसके चलते दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं मानी जा सकती। हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा चार आरोपियों को सुनाई गई सजा को रद्द करते हुए मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए वापस निचली अदालत भेज दिया है।
क्या था मामला?…..
8 अगस्त 2009 को पिरान कलियर स्थित कब्रिस्तान में नूरजहां और उसके 10 वर्षीय बेटे अब्दुल रहमत के शव बरामद हुए थे। जिसमें ग्राम प्रधान इरफान अहमद ने सिविल लाइन कोतवाली में प्राथमिकता दर्ज कराई थी। (क्योंकि उस समय पिरान कलियर क्षेत्र सिविल लाइन कोतवाली क्षेत्र के अधीन आता था, और कलियर गांव था तब तक कलियर नगर पंचायत नहीं बनी थी)।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी इमाम रजा नकवी मृतका का किराएदार था और उसने अन्य आरोपियों अजाम उर्फ अजीम, हफीज मुस्तकीम और रफी के साथ मिलकर संपत्ति हड़पने की नीयत से इस दोहरे हत्याकांड को अंजाम दिया था। जिसमे पुलिस ने कोर्ट में अलग-अलग चार चार्जशीट दाखिल की थी और अभियोजन पक्ष की ओर से कोर्ट में 22 गवाह पेश किए गए थे। जिसमें कोर्ट ने चारों (इमाम रजा नकवी, अजाम उर्फ अजीम, हफीज मुस्तकीम और रफी) को दोषी मनाते हुए सजा सुनाई थी। सजा के बाद हत्यारोपियों ने नैनीताल हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटा था. और अपील दायर की थी।
नैनीताल हाइकोर्ट का आया फैसला, निचली अदालत का आदेश रद्द, नए सिरे से दोबारा होगी सुनवाई…
नैनीताल हाइकोर्ट के न्यायमूर्ति न्यायाधीश रविंद्र मैठाणी और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ में मामले की सुनवाई चल रही थी, खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि निचली अदालत ने कानून की मूल प्रक्रिया का पालन नहीं किया, जिसके चलते दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं मानी जा सकती। हालांकि, हाईकोर्ट ने पाया कि निचली अदालत ने इन चारों मामलों को एक साथ जोड़कर एक ही साझा फैसला सुना दिया, जो कानूनन गलत है।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि आपराधिक कानून में “क्रिमिनल ट्रायल का कंसोलिडेशन” जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। केवल अभियुक्तों का संयुक्त परीक्षण संभव है, लेकिन यहां अलग-अलग ट्रायल की गवाहियों को आपस में मिला दिया गया। अदालत ने कहा कि दो अभियुक्तों के खिलाफ दर्ज गवाहों के बयानों का इस्तेमाल अन्य दो अभियुक्तों को सजा देने के लिए किया गया, जो पूरी तरह अवैध है।
अदालत ने यह भी माना कि आरोपी रफी और अजाम को उन प्रमुख गवाहों से जिरह करने का मौका नहीं मिला, जिनके बयानों के आधार पर उन्हें दोषी ठहराया गया था। इसे निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार का गंभीर उल्लंघन बताया गया। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ‘एटी मायदीन बनाम सीमा शुल्क विभाग (2022)’ के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि भले ही साक्ष्य समान हों, हर ट्रायल में उनका प्रभाव अलग-अलग हो सकता है। ऐसे में एक ट्रायल की गवाही को बिना विधिक प्रक्रिया के दूसरे ट्रायल में पढ़ा नहीं जा सकता।
अंत में हाईकोर्ट ने निचली अदालत को निर्देश दिए हैं कि वह सभी चार मामलों का स्वतंत्र रूप से मूल्यांकन करे और प्रत्येक अभियुक्त की भूमिका का निर्धारण केवल उसी ट्रायल में दर्ज साक्ष्यों के आधार पर करे, जिसमें उसे अपना पूरा बचाव प्रस्तुत करने का अवसर मिला हो। नए सिरे से सुनवाई पूरी होने तक निचली अदालत का पुराना फैसला प्रभावी नहीं रहेगा।



